जानव काबर अव कइसने मनाथे दाई मन कमरछठ के तिहार

कमरछठ ल दाई मन अपन लोग लइका के दीर्घायु, सुख सांति अव लइका प्राप्त करे खातिर मनाथे। भादो महिना के अंधियारी पाख के छठ के दिन कमरछठ तिहार ल मनाय जाथे ।

जानव काबर अव कइसने मनाथे दाई मन कमरछठ के तिहार

कमरछठ ल दाई मन अपन लोग लइका के दीर्घायु, सुख सांति अव लइका प्राप्त करे खातिर मनाथे। भादो महिना के अंधियारी पाख के छठ के दिन कमरछठ तिहार ल मनाय जाथे ।

एला हलषस्ठी तिहार भी कहे जाथे। इही दिन  किसन कन्हैया के बड़े भाई बलदाऊ के जनम होय रहिस । बलदाऊ  के शस्त्र हल अऊ मूसल हरे। इही कारन ओला हलधर भी कहे जाथे। एकरे नाम से ए तिहार के नाम हलषस्ठी परे हे। ए तिहार ल  दाई , बहिनी मन अपन लइका के दीर्घायु अउ सुख सांति के खातिर मनाथे।


ये दिन दाई मन ह उपवास रहिथे अऊ बिना नांगर जोते वाले अन्न जेला पसहर चांउर कहिथे तेला अउ बिना जोते साग-भाजी ल खाथे। आज के दिन महिला मन ह बिहनिया ले उठथे अऊ मऊहा पेड़ के लकड़ी के दतवन करथे।

गांव में नाऊ मन ह बिहनिया ले घरो घर दोना पतरी अऊ मऊहा के लकड़ी ल पहुंचा देथे। एकर बाद गांव में मंदिर के सामने एक ठन छोटे से गड्ढा खोदे जाथे , जेला सगरी कहिथे। सगरी में पानी भरे जाथे। सगरी के चारो डाहर कांसी के फूल, परसा के डारा से सजा दिये जाथे।

मंझनिया के बेरा पूरा गांव के महिला मन सगरी तीर सकलाथे अऊ पूजा पाठ करथे। पूजा के समान में लाई, महुआ, कांसी के फर ल चढ़ाय जाथे। कुछ गहना गुथा, नरियर अऊ हरदी से रंगे कपड़ा भी रखे जाथे।

आज के दिन भइस के दूध, दही अऊ माखन के उपयोग करे जाथे। गाय के दूध दही ह मना हे। एकर बाद महराज ह विधि विधान से पूजा करथे अऊ कहानी सुनाथे। कहानी सुने के बाद सब कोई परसाद झोंक के अपन-अपन घर आ जाथे। घर आय के बाद महिला मन ह अपन-अपन लइका के पीठ में कपड़ा के पोतनी ल ओकर पीठ में मारथे अऊ आशीरवाद देथे।

एकर बाद जो पसहर चांऊर के खाना बनाय रहिथे वोला सबसे पहिली छै ठन दोना में अलग से निकाल के गाय-बइला, कुकुर, बिलई, चिरई चिरगुन बर अलग से मढ़ा देथे। ओकर बाद घर के सब झन ल परसाद के रूप में बांट के खाय जाथे।

पसहर चांऊर में दूध दही मिलाय जाथे अऊ छै परकार के भाजी बनाय रहिथें ओकर संग खाय जाथे। ये परकार से कमरछठ के तिहार ल मिलजुल के हांसी खुसी से मनाय जाथे। एकर से एकता अऊ मिल बांटके खाय के भावना बढ़थे।

हमर ये परंपरा ह आज भी उत्साह से मनाये जाथे।