ढाई साल के मुद्दे पर भाजपा में इतनी बेचैनी क्यूं है भाई!
बस्तर में आयोजित चिंतन शिविर में हुए कुल मंथन से क्या 2023 के लिए भाजपा का कोई चेहरा निकल कर आएगा
ढाई साल के मुद्दे पर भाजपा में इतनी बेचैनी क्यों है!
आगामी वर्षों में भारतीय जनता पार्टी डाक्टर रमन के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी या चिंतन शिविर में हुए मंथन से कोई नया नेतृत्व ध्वज वाहक बन कर उभरेगा भाजपा के भविष्य को लेकर यह सवाल कांग्रेस के अगले कदम पर निर्भर करता है
एक समय भाजपा के ध्वजवाहक लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल से लेकर मौजूदा भाजपा के बड़े प्रबंधक गौरीशंकर अग्रवाल, राजेश मूणत सहित जूदेव परिवार,भंजदेव परिवार के अलावा इस चिंतन शिविर से कई बड़े चेहरे नदारद रहे हैं।
बुलाये गए नेताओ में राज्य के सभी सांसद ,राज्यसभा सांसद, राज्य के विधायक गण ,पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के साथ राज्य के संघ के संगठन मंत्री प्रेम सिदार व क्षेत्रीय प्रचारक के साथ एक नाम अलग से जुड़ा प्रतीत होता है प्रेम प्रकाश पांडे का।वे न तो विधायक है ना प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर कोई पदाधिकारी है लेकिन बावजूद इसके चिंतन शिविर में उनकी उपस्थिति राजनीतिक विश्लेषकों में चर्चा का विषय रही।
बहरहाल ढाई वर्षो की कांग्रेस की सरकार ने छःग की राजनीति के सारे समीकरण बदल कर रख दिये है।
भारतवर्ष मे धान का कटोरा की संज्ञा से प्रसिद्ध छःग में जब से कांग्रेस आलाकमान ने किसान पुत्र व ओबीसी लाइन पर चलने वाले मुखर नेता भूपेश बघेल के हाथों में कांग्रेस की बागडोर थमाई,कांग्रेस आलाकमान के इस निर्णय ने राज्य के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को इस हद तक उलझा दिया कि पूरे ढाई साल की कशमकश के बाद बस्तर में आयोजित भाजपा का चिंतन शिविर छत्तीसगढ़िया रंग में रंगा दिखलाई दिया।
ढाई साल का मुद्दा भाजपाइयों की उलझन
छःग में इन दिनों नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा गर्म है पिछले महीने देश की राजधानी तक जो बवाल मचा वह कांग्रेस पार्टी के इतिहास में दर्ज हो चुका है ।इस पूरे बवाल के कुल योग में जो निष्कर्ष निकल कर आना है उसको लेकर कयासों का दौर अभी भी थमने का नाम नही ले रहा है।
इन्ही कयासों में ढाई साल पूर्व कांग्रेस आलाकमान की खींची वह लकीर है जिसे मिटाने के पहले कांग्रेस को 10 बार सोचना होगा,यही वह लकीर है जिसने भाजपा को बेचैन किया हुआ है।।
क्या भाजपा का भविष्य कांग्रेस आलाकमान के निर्णय पर निर्भर करता है।
राज्य का नेतृत्व ओबीसी नेता भूपेश बघेल के हाथों में होगा या टीएस सिंहदेव के हाथों में होगा फिर से भाजपा का चेहरा बनने को बेताब डॉ रमन सिंह का राजनीतिक भविष्य कांग्रेस के इसी निर्णय पर टिका हुआ है।
यही वजह है कि ढाई साल विवाद पर कांग्रेस से ज्यादा बेचैनी भाजपा के अलग अलग खेमो में स्पष्ट रूप से दिखलाई दे रही है बल्कि इस पूरे मुद्दे को हवा देने का प्रयास भी कांग्रेसियों से ज्यादा भाजपाई कर रहे हैं।
बेचैनी की वजह यह भी है कि पूरे पंद्रह बरस की सत्ता को खोने के बाद भाजपाई यह दृश्य देखकर भौंचक है कि महज ढाई वर्षो की सरकार के कामकाज ने छत्तीसगढ़ियों को एक मंच पर लाकर खड़े कर दिया है,राज्य की स्थिति है कि अफसर बाबू भी यहां छत्तीसगढ़िया सीखने में जुटे हैं।
2023 का चुनाव छत्तीसगढ़ के नाम पर लड़ा जाएगा या छत्तीसगढ़िया के नारे पर भाजपा का पूरा फोकस इसी एक सवाल पर टिका हुआ है,हालांकि कांग्रेस में अलग-अलग गुटों का अपना-अपना दावा है कोई कहता है कि यह मुद्दा समाप्त हो चुका है तो कोई कहता है कि शीघ्र ही निर्णय आ जाएगा लेकिन यहां बात चूंकि भाजपा की हो रही है जो अजब गजब उलझन में फंस चुकी है और यही वजह है कि भाजपा आलाकमान भी छत्तीसगढ़ में भाजपा का अगला चेहरा कौन होगा यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह चाहते हैं कि टीएस सिंहदेव राज्य की कमान संभाले ताकि 2023 में वह आसानी से भाजपा का चेहरा बन पाए वहीं भाजपा के छत्तीसगढ़िया नेता भूपेश बघेल के पक्ष में खड़े हैं।ढाई साल का मुद्दा कांग्रेसियों से अधिक राज्य भाजपा के नेताओ के भविष्य से जुड़ा मामला हो चुका है।