चलते चलते-नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की जीत के मायने
3 साल बेमिसाल पर राज्य के शहरों ने लगाई भरोसे की मुहर
वो राज्य के 30 लाख किसान,मजदूर परिवारों के साथ न्याय कर रहे थे वो तो आदिवासियों को वनोपज पर ₹4000 बोनस दे रहे थे वो कुपोषण और एनीमिया से ग्रस्त राज्य की 40% आबादी को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर मानो कोई जंग लड़ रहे थे वो राज्य के हाट बाजारों में मोबाइल क्लीनिक भेज रहे थे,वो महज 3 वर्षो में 250 सरकारी स्कूलों का जीर्णोद्धार कर पहली कक्षा से अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में 80 हजार बच्चों का शाला प्रवेश उत्सव मनाने में जुटे थे, वो मातृभाषा में बच्चों को पढ़ाने के लिए गोढ़ी हल्बी कुडुक सरगुजिहा इत्यादी भाखाओं में नया पाठ्यक्रम भी जोड़ते जा रहे थे, वो तो गोबर खरीद रहे थे ,वो तो नरवा गरवा घुरवा बाड़ी में जुटे थे।
राजनीतिक विश्लेषक भी यह अनुमान लगा रहे थे की कहीं शहर इन से दूर तो नही छिटक गया है लेकिन सरकार के 3 साल पूरे होने के साथ आज आये नगरी निकाय चुनाव के नतीजों ने यह साबित कर दिया है की छत्तीसगढ़ के भूगोल इतिहास को बदलने हो रहे वृहद स्तरीय कायाकल्प को राज्य की शहरी आबादी बहुत नजदीक से देख रही थी।
कांग्रेस पर अमूमन ग्रामीण इलाकों की पार्टी होने का ठप्प लगाया जाता रहा है वहीं शहरों को भाजपा का गढ़ बताया जाता रहा है
हालांकि जमीनी सच इसके विपरीत है.भारतीय जनता पार्टी के पंद्रह वर्षीय शासनकाल में राजधानी रायपुर सहित भिलाई जगदलपुर अंबिकापुर इत्यादि प्रमुख शहरों में जनता ने लगातार कांग्रेस को अवसर दिया है।
हार का ठीकरा किसके सिर!
भाजपा की छःग प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने बार बार यह कहने की कोशिश जरूर की है कि रमन सिंह भाजपा का चेहरा नही है लेकिन इस बात से कौन इंकार करेगा कि इन तीन वर्षों में रमन सिंह ने हर मौके पर खुद को चेहरा बताने की कोशिश जारी रखी है। राजनीतिक हलकों में यह सवाल जोरो से उठ रहा है की हार की जिम्मेदारी किसके खाते में जाएगी।