आरपीएन सिंह ने आखिर क्यों छोड़ी कांग्रेस!

आरपीएन सिंह ने आखिर क्यों छोड़ी कांग्रेस!

कांग्रेस से पीढ़ियों से जुड़े कुछ खानदानी नेताओं का जब कभी नाम आता है तो आभास होता है कि कांग्रेस के प्रति अटूट समर्पण होगा जिसकी वजह से यह पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ बने हुए हैं।


उत्तरप्रदेश में जतिन प्रसाद के बाद आरपीएन कांग्रेस का दूसरा बड़ा चेहरा थे जिन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया।राजनीत में दोनो ही खानदानी विरासत सम्हाल रहे थे।

जतिन के पिता जितेंद्र प्रसाद की तरह आरपीएन के पिता सीपीएन सिंह भी गांधी परिवार के नजदीकियों में रहे,हालांकि जतिन के पास  अपना कोई राजनैतिक आधार नही रहा जबकि आरपीएन का अपना एक जनाधार रहा है लेकिन दायरे की बात करें तो कुर्मी समुदाय से होने के बावजूद आरपीएन एक लोकसभा कुशीनगर से आगे वजूद नही रखते जिसे 2014 के बाद 2019 में वे दुबारा हार चुके हैं।जतिन की तरह आरपीएन सिंह भी राहुल गांधी के करीबी नेताओ में गिने जाते रहे हैं।कल तक वे कांग्रेस समर्थित झारखंड के प्रभारी थे।

सूत्रों के अनुसार आरपीएन को भाजपा स्वामी प्रसाद मौर्य के विरुद्ध इस्तेमाल करेगी।
हालांकि मौर्य ने चुटकी लेते हुए यह कहा है कि आरपीएन को सपा का एक कार्यकर्ता भी हरा देगा।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू ने भी कहा, " चले गए. कोई बात नहीं. जो लड़ने वाले होंगे, वो रुकेंगे, जिनको ईडी, सीबीआई का डर होगा वो चले जाएंगे. जिनको संपत्ति बनानी होगी, वो चले जाएंगे. " 

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से करीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "इतने दिन ये कांग्रेस में टिके रहे, यही बड़ी बात है."

उनके मुताबिक बिजनेस, प्रतिष्ठान या फिर महत्वाकांक्षा रखने वाले नेता अब कांग्रेस को अपने लिए सही पार्टी नहीं मानते हैं.  रामदत्त त्रिपाठी की राय में, "जिनकी महत्वाकांक्षा है, उन सबको ये लगता है कि कांग्रेस के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता है."

उनके मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद भी कांग्रेस के बजाय अपना भविष्य देखते हुए ही बीजेपी के साथ गए और आरपीएन सिंह ने भी अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए ही ये फैसला लिया होगा. 


मतलब साफ है कि खानदानी जुड़ाव दरअसल कांग्रेस के अच्छे दिनों से था,संघर्ष की स्थिति में सिंधिया से लेकर आरपीएन तक खानदानी विरासत सम्हाल रहे ये सभी नेता जहाज छोड़ रहे हैं।

बहरहाल झारखंड से भी आरपीएन को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई है।यहां से कांग्रेस नेत्री अम्बा देवी व फुरकान अंसारी ने आरपीएन पर गम्भीर आरोप लगाया है

फुरकान अंसारी ने कहा कि वे शुरू से मानते आये हैं कि आरपीएन भाजपा का घुसपैठिया है. वह राज्य में कांग्रेस की पूरी टीम को बर्बाद कर देगा. उनकी बातों पर आलाकमान ने समय रहते ध्यान नहीं दिया. आज इसने अपना चेहरा दिखा ही दिया.झारखंड में आरपीएन सिंह जैसे लोग ही पार्टी को अंदर से खोखला कर रहे थे.

टिकट से लेकर पद पाने के लिए बोली लगती थी. खुलेआम वसूली का खेल चलता था. ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले लोग के चले जाने से आज कांग्रेसी राहत महसूस कर रहे हैं. झारखंड के नेताओं ने यहां तक आरोप लगाए हैं की आरपीएन भाजपा के इशारे में झारखंड की सरकार को गिराने की जोड़-तोड़ में जुटे हुए थे नेताओ ने कहा कि आलाकमान को कई बार सूचना दी गई किन्तु आरपीएन ने ऐसा मकड़जाल बून रखा था कि दिल्ली उनके खिलाफ कोई बात सुनने को तैयार नही थी।

इससे इतर यह हकीकत है कि कांग्रेस जब कभी अस्तित्व के संकट में उलझी है उसे गांधी परिवार के सदस्यों ने ही उबारा है।कांग्रेस का पूरा ढांचा ऐसा है कि गांधी परिवार के अलावा इस पार्टी को कोई और नेता ना तो बचा सकता है और ना संवार सकता है। हां संघर्ष के दिनों में महत्वकांक्षी नेताओ ने कांग्रेस छोड़ने में कोई कसर नही छोड़ी है।

इमरजेंसी के बाद इंदिरा ,इंदिरा के बाद राजीव और राजीव के बाद सोनिया गांधी इसका साक्षात उदाहरण है,परिवार के सदस्यों ने डूबती कांग्रेस पार्टी को उबारकर हर बार अपने दम पर शून्य से शिखर तक पहुचाया है।

उत्तरप्रदेश कांग्रेस के हाथ से दशकों पूर्व छूट चुका राज्य है,कांग्रेस के बाद जातिवाद की भेंट चढ़ यहां का मतदाता दस क्षेत्रीय पार्टियों में बंट चुका है।यहाँ सीधी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है कोई तीसरा दल उल्लेखनीय है तो वह बसपा है।हालांकि कुछ प्रतिशत में ही सही लेकिन कांग्रेस की आज भी दलित मुस्लिम और ब्राह्मणों के बीच स्वीकार्यता शेष है।


पार्टी को खड़े करने की जद्दोजहद

सूत्रों के अनुसार गांधी परिवार भी यह मानता है कि यूपी को हासिल करने में अभी और समय है लेकिन बावजूद इसके प्रियंका गांधी ना सिर्फ यहां जी जान से जुटी हुई है बल्कि विगत वर्षों में उत्तरप्रदेश में विपक्ष की भूमिका का निर्वहन अकेले प्रिंयका ने किया है।हाथरस से उन्नाव तथा किसान आंदोलन तक प्रिंयका ना होती तो यूपी में योगी के खिलाफ शायद ही कोई दल कोई नेता सड़क पर उतरा होता,आज भी मायावती पूरे परिदृश्य से ओझल है वहीं अखिलेश चुनाव की खातिर महज इन दो महीनों में ही सक्रिय हुए हैं।

कांग्रेस के एक बेहद वरिष्ठ नेता के अनुसार जतिन प्रसाद जाए या आरपीएन.. सच तो यही है कि यूपी की कमान कांग्रेस की छोटी इंदिरा कहे जाने वाली प्रियंका गांधी के हाथों में है।विधानसभा के बहाने मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए पार्टी के संगठन ढांचे को पुनर्जीवित करने में दिनरात जुटी प्रिंयका गांधी को गांधी परिवार के उसूलों की तरह नेताओ के आने जाने से कोई फर्क नही पड़ता।
इस लिहाज से पार्टी को कोई नुकसान होता नही दिख रहा बल्कि यूपी की कसरत के परिणाम में बगल के राज्य उत्तराखंड में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के संकेत मिल रहे हैं।पार्टी के पास खोने के लिए कुछ नही है।अमरिंदर विवाद से उबरे पंजाब की स्थिति कांग्रेस के लिए बेहतर बताई जा रही है।ऐसे में पांच राज्यो के चुनाव में राजनीतिक विश्लेषक भी यह कह रहे हैं कि कांग्रेस के हाथ कम से कम दो राज्य की सफलता जरूर आएगी।